The Train... beings death 24
आचार्य चतुरसेन ध्यान में थे तभी उन्हें कुछ विचित्र दिखाई दिया और एक ज़ोरदार धमाका हुआ। धमाके के प्रभाव से कमल नारायण दूर जाकर गिरा और बेहोश हो गया। गौतम भी दूर एक पेड़ से जा टकराया जिसके कारण उसे भी बहुत सी चोटें आई थी।
आचार्य भी धमाके की वजह से अपने आसन से उछलकर दूर जा गिरे और उनका मंत्र जाप बीच में ही अधूरा रह गया। उनके सूक्ष्म शरीर ने जो कुछ भी देखा था वो उन्हें याद तो था लेकिन उस बारे में कुछ भी कर पाने का सामर्थ्य आचार्य में नहीं रहा था।
आचार्य को भी काफी चोटें आई थी.. जिनके कारण उन पर भी हल्की सी बेहोशी छाने लगी थी.. कि तभी अचानक से उनके मस्तिष्क में कोई बात गूंजी और वो अपनी चोट की परवाह किए बिना ही उठकर खड़े हो गए। आचार्य ने जल्दी से यहाँ वहाँ देखा अभी भी दरवाज़ा ठोकने जैसी आवाज़ें आ रही थी साथ ही में उस आते जाते प्रकाश का स्त्रोत भी दिखाई देने लगा था
वो प्रकाश का स्त्रोत एक द्वार था.. सम्भवतः आयाम द्वार जो अभी अभी बंद हुआ था वही दुबारा से खुलने लगा था। वो द्वार अभी तक पूरी तरह से खुला नहीं था पर जल्दी ही किसी भी पल पूरा खुल सकता था। आचार्य उस द्वार को देखते ही हैरान रह गए थे। गौतम ने भी जब द्वार को देखा तो वो भी हैरान रह गया और यहां वहाँ देखते हुए आचार्य के पास भागते हुए पहुँचा।
"आचार्य यह सब क्या है??" गौतम ने घबराते हुए पूछा।
"मुझे लगता है कि कोई दूसरी तरफ से आयाम द्वार को दोबारा खोलने के लिए प्रयत्न कर रहा है। हमें भी इस आयाम द्वार को बंद ही रखने के लिए कुछ करना होगा। नहीं तो अनर्थ हो जाएगा!" आचार्य ने परेशान होते हुए कहा।
"पर आचार्य..? हम क्या कर पाएंगे..??" गौतम ने परेशान होकर पूछा।
"तुम सबसे पहले कमल नारायण को ढूंढो और उसके साथ मिलकर तैयारियां करो कि हम उन्हें रोकने के लिए अनुष्ठान कर पाए। अगर यह अनुष्ठान सफल हो गया तो संभव है हम आयाम द्वार को पुनः खुलने से रोक पाए।" आचार्य की बात सुनते ही गौतम ने कमल नारायण को ढूंढना शुरू कर दिया.. जो थोड़ी दूर पर एक पेड़ के पास बेहोश पड़ा था।
गौतम में कमल नारायण का चेहरा थपथपाते हुए कहा, "कमल..!! उठो कमल..!"
गौतम की आवाज इतनी तेज थी कि आचार्य ने भी सुनी और वह भी दौड़ते हुए वहां पहुंच गए। कमल को बेहोश देखकर उन्होंने गौतम से कहा, "गौतम जहां पर हम ध्यान कर रहे थे वहीं पर थोड़ा पानी रखा हुआ है। तुम फटाफट जाकर ले आओ।"
आचार्य की बात सुनते ही गौतम दौड़ते हुए गया और पानी ले आया। पानी लाकर गौतम ने आचार्य को दिया। आचार्य ने कमल के चेहरे पर पानी के छींटे मारे। कुछ ही देर में कमल को होश आ गया। वह भी बहुत घबराया हुआ दिख रहा था।
कमल ने घबराहट भरे स्वर में आचार्य से पूछा, "आचार्य..! अचानक क्या हुआ था?"
आचार्य उस समय बहुत ज्यादा चिंतित दिखाई दे रहे थे। उन्होंने गौतम से कहा, "गौतम तुम शीघ्रता से जाओ और अपने पिता आचार्य अग्निवेश को शीघ्र अति शीघ्र ही यहां ले आओ।"
गौतम आचार्य चतुरसेन की आज्ञा पाकर तुरंत ही आचार्य अग्निवेश को लेने गुरुकुल की तरफ दौड़ पड़ा। कुछ कुछ ही पलों में कमल नारायण की हालत पहले से काफ़ी ठीक हो गई थी। आचार्य चतुरसेन ने कमल नारायण का सर सहलाते हुए पूछा, "अब तुम कैसा अनुभव कर रहे हो?"
कमल नारायण ने अपना सर हिलाते हुए कहा, "मैं ठीक हूं.. आचार्य!"
"तो फिर ठीक है! फटाफट उठो हमें अभी बहुत से काम करने हैं।" आचार्य की बात सुनते ही कमल नारायण ने असमंजस से देखते हुए पूछा, "कैसे काम? आचार्य..!"
आचार्य ने परेशान होकर कहा, "कमल..! यह समय प्रश्न उत्तर का नहीं है। आयाम द्वार पुनः कभी भी खुल सकता है। दूसरी तरफ से कोई तीव्र नकारात्मक शक्ति इसे खोलने का प्रयास कर रही है। अगर ऐसा हो गया तो उससे हुई हानि को ठीक करना हमारे समर्थ में नहीं होगा।"
"मैं कुछ समझा नहीं आचार्य..!" कमल नारायण ने कन्फ्यूजन से पूछा।
"इस समय हम तुम्हें कुछ भी समझाने की स्थिति में नहीं है। तुम शीघ्र अति शीघ्र उठो और जल्दी से जल्दी कुछ सामग्रियों की आवश्यकता होगी उन्हें इकट्ठा करो।" आचार्य ने आदेशात्मक लहजे में कहा और जरूरत की सारी सामग्रियों के बारे में कमल को बता दिया।
कमल नारायण को कुछ भी समझ में नहीं आया था। फिर भी आचार्य की आज्ञा के अनुसार वह तुरंत आचार्य की बताई हुई सारी सामग्रियां इकट्ठा करने के लिए चला गया। तब तक आचार्य के पास जो भी सामग्रियां थी उनसे वह एक विशेष यंत्र का निर्माण करने लगे।
आचार्य ने रोली, गुलाल, अक्षत, पुष्प, धूप सभी सामग्रियों से एक विशिष्ट अष्टदल कमल का निर्माण किया। उस कमल का मध्य भाग इतना बड़ा था कि चार लोग आराम से बैठ कर हवन कर सके। उस के मध्य भाग में एक षटकोणीय हवन कुंड बनाया। साथ ही साथ वहां पर रखी जरूरत की सभी सामग्रियों को आचार्य ने अपने आसपास जमा लिया।
तभी गौतम आचार्य अग्निवेश के साथ वहां पहुंचा। आचार्य अग्निवेश के चेहरे को देखकर लग रहा था कि उन्हें वहाँ पर घटित किसी भी बात की जानकारी नहीं थी। आचार्य अग्निवेश बहुत ही ज्यादा असमंजस में दिखाई दे रहे थे। उन्होंने वहां पहुंचते ही आचार्य चतुरसेन को नमस्कार करके कहा, "प्रणाम आचार्य..!! आपने इस समय हमें यहां बुलाया? कोई विशेष प्रयोजन..?"
आचार्य चतुरसेन ने हां में अपनी गर्दन हिलाते हुए कहा, "हां आचार्य..! समस्या बहुत ही गंभीर है। मैं अकेले इसका समाधान नहीं कर सकता।"
आचार्य चतुरसेन की बात सुनते ही आचार्य अग्निवेश ने असमंजस से पूछा, "मैं कुछ समझा नहीं? क्या हुआ है यहां?"
तब आचार्य चतुरसेन ने गौतम, कमल नारायण, आत्मानंद और वैदिक द्वारा किए गए सारे तंत्र प्रयोग के बारे में बताया तथा उनसे जो आयाम द्वार खुला था उसके बारे में भी बता दिया। फिर आगे कहा, "हमने यहां पर एक तीव्र नकारात्मक शक्ति को अनुभव किया है। आयाम द्वार भले ही बंद हो गया था लेकिन जिस आयाम में यह द्वार खुला था वहां पर स्थित कुछ नकारात्मक शक्तियों को यहां आने का रास्ता पता चल गया है। अब वह शक्तियाँ प्रयास कर रही हैं कि अंदर से उस आयाम द्वार को पुनः खोलकर धरती पर आने का रास्ता बनाया जा सके।"
"इसमे आप मुझसे किस सहायता की अपेक्षा कर रहे हैं आचार्य??" आचार्य अग्निवेश ने पूछा।
" हम चाहते हैं कि आप उस आयाम द्वार को ना बनने देने की इस प्रक्रिया में हमारी सहायता करें। ताकि हम सब मिलकर इस आयाम द्वार को सदैव सदैव के लिए बंद कर सके।" आचार्य चतुरसेन ने कहा।
"अवश्य आचार्य..! मैं अवश्य आपकी सहायता करूंगा!" आचार्य अग्निवेश ने कहा ।
आचार्य अग्निवेश की बात सुनकर आचार्य चतुरसेन ने उन्हें अपने किए जाने वाले अनुष्ठान की सारी विधियां सारे गुप्त मंत्र बता दिए और कहा, "आचार्य अग्निवेश..! हमारा सर्वप्रथम प्रयास यह रहेगा कि हम किसी भी परिस्थिति में द्वार को खुलने ना दें। यहां पर से हम उस स्थान को अभिमंत्रित कर दें ताकि पुनः उसी स्थान पर आयाम द्वार ना खुल सके।"
तभी कमल नारायण ने बीच में ही टोकते हुए पूछा, "आचार्य..! यदि हम ऐसा नहीं कर पाए तो?"
कमल नारायण की बात सुनते ही आचार्य चतुरसेन के चेहरे पर परेशानी वाले भाव दिखने लगे थे। आचार्य चतुरसेन को चिंतित देखकर गौतम ने कमल नारायण को डांटते हुए कहा, "तुम कोई बात अच्छी नहीं बोल सकते? हमेशा नकारात्मक बोलना आवश्यक होता है।"
गौतम की बात सुनते ही कमल नारायण ने अपनी गर्दन झुका ली और कहा, "मैं केवल संभावना व्यक्त कर रहा था। यदि ऐसा ना हो तो हमारे पास कोई दूसरा रास्ता भी तो उपलब्ध होना चाहिए। अंत समय में यदि हमारा सोचा हुआ ना हुआ तो..? ऐसा ना हो के कुछ और चीजों पर विचार करने के लिए संभवतया तब समय ना हो?"
कमल नारायण का तर्क आचार्य अग्निवेश और आचार्य चतुरसेन को उचित लगा। उन्होंने चिंतित होकर कहा, "तो फिर हमें यह प्रयत्न करना होगा कि हम इस स्थान को कील दें। ताकि अगर आयाम द्वार खुल भी गया तो कोई भी दुष्ट शक्ति उस सुरक्षा चक्र को पार करके धरती पर प्रवेश ना कर सके और यहां आकर किसी भी प्रकार का कोई नुकसान ना पहुंचाएं।"
आचार्य चतुरसेन की बात सभी को अच्छी लगी। आचार्य चतुरसेन की बात पर सभी ने अपनी मौन स्वीकृति दे दी थी। सभी की स्वीकृति के बाद आचार्य चतुरसेन ने आयाम द्वार को सदैव के लिए बंद करने के लिए अनुष्ठान करना आरंभ कर दिया।
अनुष्ठान काफी समय तक चला.. अनुष्ठान पूरा होते होते लगभग ब्रह्म मुहूर्त हो गया था। जिस समय अनुष्ठान पूर्ण हुआ आचार्य चतुरसेन काफी प्रसन्न नजर आ रहे थे। उन्होंने खुश होकर कहा, "मां भगवती और महादेव की अनुकंपा से हमने निर्विघ्नं आयाम द्वार को बंद कर दिया है।"
आचार्य चतुरसेन की बात से गौतम और कमल नारायण काफी खुश नजर आ रहे थे। अचानक से कमल नारायण कुछ गंभीर दिखाई देने लगे और आचार्य से पूछा, "आचार्य..! यह द्वार अभी के लिए बंद हुआ है या सदैव के लिए?"
आचार्य चतुरसेन ने मुस्कुराते हुए कहा, "अभी के लिए तो हमने इसे बंद कर दिया है और भविष्य में भी हम इस बात के लिए आश्वस्त है कि यह द्वार बंद ही रहेगा।"
"लेकिन यदि खुल गया तो..?" कमल नारायण ने अपनी शंका व्यक्त की। कमल नारायण की बात सुनते ही आचार्य अग्निवेश और आचार्य चतुरसेन सोच में पड़ गए थे। गौतम ने फिर से कमल नारायण को डांटते हुए कहा, "तुम पागल हो गए हो क्या? यहां पर अभी अभी आचार्य ने इतना बड़ा अनुष्ठान करके आयाम द्वार को सदैव के लिए बंद करवा दिया है। अभी भी तुम्हें संशय है क्या तुम्हें आचार्य ऊपर विश्वास नहीं?"
कमल नारायण ने तुरंत ही अपने हाथ जोड़ के आचार्यों के सामने क्षमा मांगते हुए कहा, "क्षमा कर दीजिए गुरुदेव..! मेरे कहने का तात्पर्य यह नहीं था कि आप इस योग्य नहीं है। मैं आपके ऊपर किसी भी तरह का शक नहीं कर रहा हूं। मैं केवल एक स्थिति बता रहा हूं। जैसे हमने आयाम द्वार का निर्माण परीलोक और हिमालय स्थित उस दिव्य स्थान पर जाने के लिए किया था जहां पर बहुत से ज्ञानी साधु, सन्यासी और ऋषिगण रहते हैं। परंतु हमारी ही किसी एक भूल के कारण यह आयाम द्वार उस स्थान पर खुला जहां पर उसे नहीं खुलना चाहिए था। सभी प्रयासों के बाद भी बंद आयाम द्वार पुनः अंदर से खोलने का प्रयत्न किया जाने लगा। कदाचित हमारे इस आयोजन में ऐसी कोई त्रुटि तो नहीं रह गई? मैं केवल इसकी संभावना व्यक्त कर रहा हूं! अगर हमें अपनी त्रुटियों का ज्ञान हो तो हम उसे समय पर सुधार सकते हैं और उससे होने वाली हानि से बचा जा सकता है।"
कमल नारायण की बात सुनते ही आचार्य चतुरसेन ने कमल नारायण के सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो कमल..! हमें अपने हर कर्म के पीछे के शुभ और अशुभ फल के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए। कई बार हमारा किया गया शुभ कार्य भी अशुभ कार्य में परिवर्तित हो जाता है। इसलिए हमें पता होना चाहिए कि हम क्या कर रहे हैं!"
Punam verma
27-Mar-2022 06:28 PM
बड़ा ही खतरनाक मोड़ लिया है कहानी ने।
Reply
Lotus🙂
26-Feb-2022 09:50 AM
Bahut khoob
Reply
Aalhadini
27-Feb-2022 12:44 PM
Thanks 😊 🙏
Reply
देविका रॉय
24-Feb-2022 10:21 PM
बहुत खूब स्टोरी
Reply
Aalhadini
27-Feb-2022 12:44 PM
धन्यवाद 🙏🏼
Reply